

















विद्या कोई भी हो लौकिक या आध्यात्मिक उसके सारतत्व को समझने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है।गुरु मनुष्य के अंदर व्याप्त अज्ञान रूपी अंधकार को अपने ज्ञान के प्रकाश से दूर कर देते है।
मानव जीवन अत्यंत दुर्लभ है यह जन्म बार बार नही मिलता।मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति है।परमात्मा ज्ञेय है अज्ञेय नही।
इसकी अनुभूति सद्गुरु के माध्यम से सम्भव है।जब जीवन मे सद्गुरु की प्राप्ति होती है तभी मनुष्य मुक्ति की ओर अग्रसर होता है।
सद्गुरु एक आईने के समान होते है जो अपने भक्तो को उनके रूप के बारे में दर्शाते है।सद्गुरु की शरण में आया व्यक्ति आत्म ज्ञान के पश्चात अपने विचारो के द्वन्द से मुक्त होकर श्रेष्ठ जीवन जीने लगता है।पूर्णता सद्गुरु से आती है।ज्ञान योग ,भक्ति योग,कर्मयोग प्रत्येक के अंत में यही कहा गया है गुरु कृपा बिना यह सब असम्भव है--
मानव जीवन अत्यंत दुर्लभ है यह जन्म बार बार नही मिलता।मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति है।परमात्मा ज्ञेय है अज्ञेय नही।
इसकी अनुभूति सद्गुरु के माध्यम से सम्भव है।जब जीवन मे सद्गुरु की प्राप्ति होती है तभी मनुष्य मुक्ति की ओर अग्रसर होता है।
सद्गुरु एक आईने के समान होते है जो अपने भक्तो को उनके रूप के बारे में दर्शाते है।सद्गुरु की शरण में आया व्यक्ति आत्म ज्ञान के पश्चात अपने विचारो के द्वन्द से मुक्त होकर श्रेष्ठ जीवन जीने लगता है।पूर्णता सद्गुरु से आती है।ज्ञान योग ,भक्ति योग,कर्मयोग प्रत्येक के अंत में यही कहा गया है गुरु कृपा बिना यह सब असम्भव है--

जो विरंचि शंकर सम होई ।।"



















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