
















प्रार्थना में भाव होना चाहिए और भाव उस वक्त पैदा हो सकता है जब हम उस आदमी के गुणों की तरफ देखे जिसके वास्ते प्रार्थना करनी है।
जब हम उसके गुणों की तरफ देखते है तो नेचुरल उसकी तरफ से कुछ प्रेम की लहर दौड़ती है और उस हालत में प्रार्थना अपना पूरा काम करती है।
प्रार्थना उस समय तक करनी चाहिए जब तक उसकी याददाश्त हो।जब याददास्त गायब हो जाये तो फिर अगर प्रार्थना न की जाये तो कोई हर्ज की बात नही है।"



















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