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Wednesday, 14 June 2017

एक भक्त पूछा कि मेरा मन पूजा या अभ्यास में नही लगता । मुझे क्या करना चाहिए?

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
🌻*-🌷-🌷-🌷-*🌻

🌻"परम् पूज्य पापाजी अपने निवास स्थान पर सत्संग कराते थे।सत्संग के पश्चात आध्यात्मिक चर्चा के दौरान–
🌻एक भक्त पूछा कि मेरा मन पूजा या अभ्यास में नही लगता । मुझे क्या करना चाहिए?

🌻 पापाजी ने उस भक्त के इस प्रश्न का उत्तर कुछ इस प्रकार दिया,प्रस्तुत है उन्ही के शब्दों में उसके कुछ अंश–
"🌻सर्वप्रथम अपने इष्टदेव /गुरुदेव के ध्यान में उनके द्वारा बताई गयी साधना के लिए निश्चित समय से निश्चित समय पर बैठना चाहिए,मन लगे या न लगे।
🌻जैसा किभगवद्गीता में कहा गया है कि अभ्यास व् वैराग्य से इस मन को नियंत्रित किया जा सकता है।अतः अभ्यास की निरन्तरता एवम् वैराग्य के ज्ञान से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
🌻सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मन बहुत विशाल होता है वह काम क्रोध लोभ मोह राग द्वेष आदि से मिल कर बना है।हमे उसे छोटे छोटे टुकड़ो में विभाजित कर नियंत्रण में लाने का प्रयास करना चाहिए।जैसे यदि नमक का बड़ा से ढेला पीसना है तो उसके छोटे छोटे टुकड़े कर लिए जाये तो उसे पीसना आसान हो जायेगा ठीक उसी प्रकार यदि मन से एक एक आवरण को हटाने का प्रयास करे तो निश्चित ही सफलता मिलेगी।किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए धैर्य एवम लगन की आवश्यकता है।अतः अपने गुरुदेव में श्रद्धा एवम् विश्वास रखते हुए धैर्य एवम् लगन के साथ अभ्यास साधना करते रहना चाहिये।"🌻
🌻इस सम्बन्ध में पूज्य पापाजी सन्त कबीर दास जी के एक दोहे की लाइन भी कहते थे –
"मैमंता मन मारि रे ,
नान्हा करि करि पीस।।
अर्थात अपने मन के काम क्रोध लोभ मोह आदि के छोटे छोटे टुकड़े कर के उसे नियंत्रित कीजिये।"🌻
🌻*🌷परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे।🌷*🌻
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻(क्रमशः)🌻🌻🌻🌻🌻

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