
















जीव पाय निज सहज सरूपा।





यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि सन्त सद्गुरु एवम् ईश्वर इन सब में क्या अंतर है।इसको स्पष्ट करने के लिए परम् पूज्य समर्थ सद्गुरु श्री चच्चा जी महाराज के अमृत वचन से अवगत करा रहा हूँ–
""सन्त और अवतार में फर्क है अवतार को सन्त की स्कीम पर काम करना पड़ता है जब उनका काम हो जाता है वे चले जाते है।सन्त और ईश्वर में कोई फर्क नही है जो ईश्वर का विधान है उसी के मुताबिक सन्त स्कीम बना देते है।सन्त और ईश्वर की मर्जी में कोई भेद नही होता।सन्त महात्मा या अवतार किसी को छोटा या बड़ा नही कहा जा सकता है क्योंकि हर एक का मिशन अलग अलग होता है और हर एक अपने मिशन में बड़ा होता है।इस वास्ते किसी को छोटा बड़ा कहने का कोई हक हमको नही है जैसा कि रामायण में कहा है
'को बड़ छोट कहत अपराधू'।"""
अंत में मै यही कहूँगा कि प्रत्येक को सद्गुरु की शरण में जाकर मानव जीवन के लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास समय रहते अवश्य करना चाहिए।यदि किसी के सद्गुरु या इष्टदेव नही है तो उन्हें जिसमे श्रद्धा विश्वास हो उनमे स्वयम को समर्पित कर देना चाहिए।



















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