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Wednesday, 21 June 2017

ईश्वरीय गुणों (कर्तव्य पालन,सदाचार,प्रेम,करुणा,दया,पवित्रता,परोपकार आदि) को पूरी तन्मयता से अपने जीवन में उतारने का प्रयास करे

🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
🌻*-🌷-🌷-🌷-*🌻
🌻"परम् पूज्य पापाजी की 'रामचरितमानस' में वर्णित
🌻" मम दरसन फल परम् अनूपा,
जीव पाय निज सहज सरूपा।🌻
🌻"इस चौपाई की ब्याख्या करते हुए बताया कि–

🌻"ईश्वरीय गुणों (कर्तव्य पालन,सदाचार,प्रेम,करुणा,दया,पवित्रता,परोपकार आदि)को पूरी तन्मयता से अपने जीवन में उतारने का प्रयास करे तो जीवन लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है तथा वह ईश्वर का प्रिय होता है।एक गुण को आत्मसात करने से सभी ईश्वरीय गुण स्वतः चुम्बक की तरह खीचते चले आते है ।इस तरह इन गुणों के साथ जीवन जीने से मनुष्य ईश्वर के दर्शन का अधिकारी हो जाता है और तब उस परमपिता परमात्मा के दर्शन का फल उसे अपने निज स्वरूप की प्राप्ति के रूप में मिलता है।

🌻"अब प्रश्न उठता है ईश्वर के सानिध्य कैसे प्राप्त करे।
🌻"इसका सीधा सा उत्तर है कि ईश्वर ने अपने प्रतिनिधि के रूप में इस पृथ्वी पर सद्गुरु की व्यवस्था की है अतः सन्त सद्गुरु की शरण ग्रहण कर जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करते रहे।
यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि सन्त सद्गुरु एवम् ईश्वर इन सब में क्या अंतर है।इसको स्पष्ट करने के लिए परम् पूज्य समर्थ सद्गुरु श्री चच्चा जी महाराज के अमृत वचन से अवगत करा रहा हूँ–
""सन्त और अवतार में फर्क है अवतार को सन्त की स्कीम पर काम करना पड़ता है जब उनका काम हो जाता है वे चले जाते है।सन्त और ईश्वर में कोई फर्क नही है जो ईश्वर का विधान है उसी के मुताबिक सन्त स्कीम बना देते है।सन्त और ईश्वर की मर्जी में कोई भेद नही होता।सन्त महात्मा या अवतार किसी को छोटा या बड़ा नही कहा जा सकता है क्योंकि हर एक का मिशन अलग अलग होता है और हर एक अपने मिशन में बड़ा होता है।इस वास्ते किसी को छोटा बड़ा कहने का कोई हक हमको नही है जैसा कि रामायण में कहा है
'को बड़ छोट कहत अपराधू'।"""

अंत में मै यही कहूँगा कि प्रत्येक को सद्गुरु की शरण में जाकर मानव जीवन के लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास समय रहते अवश्य करना चाहिए।यदि किसी के सद्गुरु या इष्टदेव नही है तो उन्हें जिसमे श्रद्धा विश्वास हो उनमे स्वयम को समर्पित कर देना चाहिए।🌻

🌻*🌷*परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे।🌷*🌻
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻(क्रमशः)🌻🌻🌻🌻🌻

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