


















सद्गुरु ही ईश्वर और भक्त के बीच की कड़ी हैं एवम् ईश्वर प्राप्ति का सुगम साधन है।जब मनुष्य के अंदर तीव्र उत्कंठा होती है तो सद्गुरु मिलने में उसे देर नही लगती।यही जिज्ञासा उसे सद्गुरु की शरण में ले जाती है।
सद्गुरु के वचनो का श्रद्धा विश्वास के साथ मन वचन और कर्म से पालन करने पर साधक साधना की ओर अग्रसर होकर परमशक्ति का अनुभव करने लगता है।सद्गुरु की शरणागत होने पर साधक को उनकी आज्ञा पालन मात्र करना होता है एवम् उसकी भौतिक एवम् आध्यात्मिक चिंताए सभी सद्गुरु में लीन हो जाती है।
सद्गुरु हर तरह से उसे अपने सुरक्षा कवच में रखते है किन्तु इसके लिए साधक के अंदर अटूट श्रद्धा विश्वास एवम् समर्पण का भाव होना आवश्यक है।
आज भी हमारे परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज यद्यपि स्थूल रूप में हमारे समक्ष नही है फिर भी सूक्ष्म सत्ता के रूप में वे सदैव हम सबके साथ है।मेरा(पापाजी)यह विश्वास है कि आज भी जो उनसे मानसिक रूप से श्रद्धाभाव से जुड़ जायेगा उसका वे हर तरह से कल्याण करेंगे।"


















