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Thursday, 28 January 2016

"निमंत्रण" - श्री लालाजी महाराज, फतेहगढ़

तुम जैसे भी हो, जिस हाल में हो,
मेरे निमंत्रण को स्वीकार करो और चले आओ
मैं प्रतिपल तुम्हारी प्रतीक्षा में हूँ, साहस करो और मेरे स्पर्श को छू लो,
अन्तर कीतमअवस्था में समा जाओ, मिलन के सुख को अंगीकार करो
तो आओ स्वागत है द्वार अब भी खुले हैं कुटिया के,
स्वागत को तत्पर हूँ, स्वयं प्रतीक्षारत हूँ जाओ, बस एक बार,
बस एक बार आंखें उत्सुक हैं, अपलक चितवन हैं, खोज तुम्हारी
अब भी जारी है एक बार, बस एक बार जाओ जैसे भी हो,
एक बार, बस एक बार
अभी तक तुम गीता और वेद पढ़ते रहे, यज्ञ और हवन करते रहे,
और जो दुर्गति होनी थी, होती रही
तुम्हें फिर से अज्ञानी हो जाने की हिम्मत जुटानी होगी
अंतर में संग्रहित ज्ञान से मुक्ति पानी होगी


पूरी तरह शून्य में जाना होगा,
जिन विश्वासों से चिपके रहे हो, निजात उनसे भी पानी होगी
मैं सारी मानवता को, विश्व के इतिहास को, उसमें निहित जो जीवन है,
उस आभास को, सभी में प्रेम और प्रेम के सच का संचार कर दूंगा
यदि यही क्रांति है, तो आओ, मैं तुम्हें भय हीन कर दूंगा


जाओ, बस एक बार, बस एक बार, बस एक बार
                                                         -फकीर रामचन्द
                                                     (श्री लालाजी महाराज, फतेहगढ़)

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