श्री गुरु चरण
छोड़ कित जाऊँ ?
भव-सागर
में डूबत नैया,
को जेहि आज
बुलाऊँ ।।
वाधा जन्म-मरण की
छूटे, कृपा-दृष्टि
जो पाऊँ ।
नीच ऊँच
सब तारत क्षण
में, क्यों कर
नाथ भुलाऊँ ।
शंकर सम
औढर दानी हितु,
कैसे हृदय-बिठाऊँ
।
कर अब
दया जानि निज
सेवक, जेहि विधि
दर्शन पाऊँ ।।
रटै नाम
निशि वासर, पद
रज माथ लगाऊँ
जीवन- धन सर्वस्व
तुम्हें तज, और
देव केहि ध्याऊँ
।।
कीजे क्षमा
दोष अवगुण सब,
नाथ कहत सकुचाऊँ
।
जब जब
व्यापे लोभ-मोह-भ्रम, लख ‘स्वरूप’
हरषाऊँ ।।
यश- कीरत-धन-धाम-बड़ाई, चाह नहीं
कछु पाऊँ ।
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