Like on FB

Saturday, 23 January 2016

पूज्य चच्चाजी के परम भक्त स्व० श्री भगवती शरण दास द्वारा सप्रेम लिखी हुई श्री सद्गुरु चालीसा |

"परम संत श्री भवानीशंकर स्तुति "
~~~ श्री सद्गुरु चालीसा ~~~   
(१७-०१-१९४)

दोहा: श्री गुरुचरण सरोजरज निज मन मुकुर सुधार ।
         वरनउ सद्गुरु विमल यंश जो दायक फलचार ॥
         बुद्धिहीन तन जानिके, सुमिरौ गुण आभार । 
         जिनके सुमिरन मात्र से जन होते भाव पार ॥ 

जय गुरुदेव ज्ञान गुण सागर । संत प्रवर तिहुँ  लोक उजागर ॥ १ ॥ 
रघुवर राम भक्त बल धामा । कलिमल हरण ध्यान अभिरामा ॥ २ ॥ 
सदाचार रवि लोक प्रकाशी । चारु चरित्र कीर्ति अविनाशी ॥ ३ ॥ 
कुमति निवार सुमति शुभदाता । निज शरणागत भाग्य विधाता ॥ ४ ॥ 
पावन परम पवित्र सुवेशा । चिंतन चारु हरण भव क्लेशा ॥ ५ ॥ 
रघुवर किन्ही सदा बड़ाई । राम पद कमल प्रीति उर छाई ॥ ६ ॥ 
शरणागत गुरुवार यश गावैं । बिनु श्रम भुक्ति मुक्ति जन पावें  ॥ ७ ॥ 
सुरनर साधक सिद्ध मुनीशा । नारद शारद सहित अहीशा ॥ ८ ॥
कवि कोविद ज्ञानी विज्ञानी । गावहिं सतत सुयश वर वानी ॥ ९ ॥ 
जीव मात्र के प्रभु उपकारी । भक्ति विमल दाता भ्रमहारी ॥ १० ॥ 
गुरुके शब्द मंत्रवत् राजैं । सिद्धि प्रदान करै सुख साजैं ॥ ११ ॥ 
रोम रोम रवि तेज विराजै । भ्रम तम तोम हरै छवि छाजै ॥ १२ ॥ 
निज गुरु वचन सदा अनुसरहीं । तृण कँह तरु कण कँह गिरी काहिं ॥ १३ ॥रामचन्द्र महिमा रखवारे । निज जन आस पुजावन हारे ॥ १४ ॥ 
दुर्गम काज जगत के जेते । श्री गुरुकृपा सुगम उनती तेते ॥ १५ ॥
सब सुख सुलभ देव की सरना । गुरु रक्षक तो कहु को डरना ॥ १६ ॥ 
आपन तेज सम्हारौं आपै । भव भय मूल हाँक ते कांपे ॥ १७ ॥ 
भूत पिसाच  निकट नहीं आवै । श्री गुरुवर जब नाम सुनावैं ॥ १८ ॥ 
नासै रोग मिटै सब पीरा । जपत भवानी शंकर धीरा ॥ १९ ॥ 
संकट ते गुरुदेव छुड़ावें । मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ।। २० ।। 
जिनके उर गुरु चरन विराजै । जग उनके यश का डंका वाजै ॥ २१ ॥ 
दास मनोरथ जो उर लावै । पूरन होई परम सुख पावै ॥ २२ ॥ 
गुरु प्रताप सब जग महँ व्यापा । विदित भवानी शम्भु प्रतापा ॥ २३ ॥ 
साधू संत के गुरु रखवारे । पाप ताप हर राम दुलारे ॥ २४ ॥ 
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । दीन अनाथों के पितु माता ॥ २५ ॥ 
राम रसायन गुरु के पासा । सदा राम रघुवर के दासा ॥ २६ ॥ 
श्री गुरु भजन राम को भावै । जनम जनम के दुःख बिसरावै ॥ २७ ॥ 
अंतकाल रघुवर पर जाई । श्रम बिनु जन्म चक्र मिटि जाई ॥ २८ ॥ 
और देवता चित्त न धरई । गुरुपद सेई सर्व सुख करई ॥ २९ ॥ 
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै सद्गुरु मति धीरा ॥ ३० ॥ 
जय जय जय गुरुदेव गुसाईं । छमा करहुँ जन की लरिकाई  ॥ ३१ ॥ 
जय जय जयति जयति राघावर । जय जय जयति भवानी शंकर ॥ ३२ ॥ 
जय जय बुंदेलखंड यशदाता । जय त्रिलोक भूषण जन त्राता ॥ ३३ ॥ 
जय रामायण मंत्र प्रकाशी । जय प्रकाश निधि जय अविनाशी ॥ ३४ ॥ 
शरणागत पालक उपकारी । असरन सरन मोह भ्रम हारी ॥ ३५ ॥
जय श्रीराम मंत्र के दाता । जय त्रिलोक भूषण जान त्राता ॥ ३६ ॥ 
नित्य पढ़ै जो सद्गुरु चालीसा । होई सिद्धि साखी गौरीसा ॥ ३७ ॥ 
दैहिक दैविक भौतिक तापा । श्री गुरुशरण न कहुँही व्यापा ॥ ३८ ॥ 
श्री गुरुदेव सहित गुरु माता । बसहिं दास उर जन गण त्राता ॥ ३९ ॥ 
जन पर कृपा करहु अविनासी । हरहु त्रिताप दास उर वासी ॥ ४० ॥ 


दोहा: श्रीगुरुवर संकट हरण , मंगल मोद निधान । 
         गुरुमाता सह बसहु उर , करहु परम कल्याण ।। 

No comments:

Post a Comment