आज प्राणी सांसारिक उपलब्धियों को ही अपनी उन्नति का लक्ष्य मानकर उसी में लगा रहता है । उनकी पूर्ति के लिए वह छल-कपट, झूठ-बेईमानी आदि को गलत नहीं मानता जिससे सात्विक बुद्धि का निरंतर नाश होकर नैतिक मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं का पतन हो रहा है । इसी कारण मनुष्य अपने जीवन के मूल लक्ष्य को भूलता जा रहा है । भौतिकवाद की चमक तथा चकाचौंध से बुरी तरह भ्रमित हो चुका है । इस कारण मानसिक तनाव, अवसाद, अशांति , गृह-कलह तथा कुंठाओं के बीच जीवन जी रहा है। उसके पास धन की कमी नहीं है , किन्तु क्या धन से इन सब बाधाओं से छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है ? जब प्राणी सभी ओर से निराश हो जाता है , तब उसे ईश्वर की याद आती है । शांति प्राप्ति हेतु उसका रुझान तथा आस्था धर्म की ओर होने लगती है । वह आध्यात्म मार्ग पर चलने के लिए एक सच्चे मार्ग दर्शक की आवश्यकता अनुभव करने लगता है , जिस प्रकार आज धर्म गुरुओं की कमी नहीं है , उसी प्रकार आज भी सच्चे संतों की भी कमी नहीं हैं ।
जैसा कि कहा है -
सच्चा संत वही है जो मान , बड़ाई , ईर्ष्या से मुक्त हो, जीवन-मुक्त होकर संसार में निर्वाह कर रहा हो ।
सच्चे सद्गुरुओं की कमी कभी भी नहीं रही । उनको खोजने वाले लाखों में एक ही होते हैं । यदि सद्गुरु मिल भी जावें तो बिना पात्रता के उनको पहचान पाना अत्यंत कठिन है । पत्रतता न होने से सद्गुरु से ह्रदय का सम्बन्ध नहीं बन पता । ऐसी स्तिथि में सद्गुरु की शरण में पहुँच कर भी अपने आध्यात्मिक लक्ष्य को भूल कर अपनी सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति में फंस कर रह जाता है । इच्छा पूरी न होने पर सद्गुरु पर से विश्वास और श्रद्धा दोनों समाप्त होने लगते हैं ।
सद्ग्रन्थों का पठन - पाठन , संतों के उपदेश एवम प्रवचनों का श्रवण तथा सद्पुरुषों का संग आध्यात्म की ओर अग्रसर होने में सहायक है । विशेष लाभ तब होता है जब इन सब का जीवन में अनुसरण करें तथा अपने आचार विचार में उन्हें ढालें । उनको अपनावें । आज लोग शब्द पालन पर ध्यान नहीं देते । जो व्यक्ति शब्द पालन पर महत्व नहीं देते , वह कुछ नहीं कर पाते । शब्द पालन का अभ्यास अत्यंत आवश्यक है । परंम् संत श्री चच्चा जी महाराज की साधक जीवन की आत्मकथा पढ़ें । उनका मनन करें , चिंतन करें । इस सबसे आध्यात्म पथ पर आगे बढ़ने तथा सद्गुरु की प्राप्ति तथा पात्रता पाने हेतु तीव्र उत्कंठा , जिज्ञासा तथा हृदय में तड़प जागृत करने में विशेष सहायता प्राप्त हो सकती है । तभी हम अपने परम लक्ष्य की प्राप्ति में सफल हो सकते हैं । यह हमारा सौभाग्य है कि सद्गुरु स्वरूप श्री चच्चा जी सा० द्वारा प्रतिपादित सहज योग साधना को जनजन में पहुँचाने का कार्य सा० पूज्य डा० जयदयाल जी एवं पूज्य कृष्ण दयाल जी महाराज द्वारा किया जा रहा है ।
जैसा कि कहा है -
"कंचन तजना सहज है , सहज तिया का नेह ।
मान, बड़ाई , ईर्ष्या , तजना दुर्लभ ऐह ॥ "
सच्चा संत वही है जो मान , बड़ाई , ईर्ष्या से मुक्त हो, जीवन-मुक्त होकर संसार में निर्वाह कर रहा हो ।
सच्चे सद्गुरुओं की कमी कभी भी नहीं रही । उनको खोजने वाले लाखों में एक ही होते हैं । यदि सद्गुरु मिल भी जावें तो बिना पात्रता के उनको पहचान पाना अत्यंत कठिन है । पत्रतता न होने से सद्गुरु से ह्रदय का सम्बन्ध नहीं बन पता । ऐसी स्तिथि में सद्गुरु की शरण में पहुँच कर भी अपने आध्यात्मिक लक्ष्य को भूल कर अपनी सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति में फंस कर रह जाता है । इच्छा पूरी न होने पर सद्गुरु पर से विश्वास और श्रद्धा दोनों समाप्त होने लगते हैं ।
सद्ग्रन्थों का पठन - पाठन , संतों के उपदेश एवम प्रवचनों का श्रवण तथा सद्पुरुषों का संग आध्यात्म की ओर अग्रसर होने में सहायक है । विशेष लाभ तब होता है जब इन सब का जीवन में अनुसरण करें तथा अपने आचार विचार में उन्हें ढालें । उनको अपनावें । आज लोग शब्द पालन पर ध्यान नहीं देते । जो व्यक्ति शब्द पालन पर महत्व नहीं देते , वह कुछ नहीं कर पाते । शब्द पालन का अभ्यास अत्यंत आवश्यक है । परंम् संत श्री चच्चा जी महाराज की साधक जीवन की आत्मकथा पढ़ें । उनका मनन करें , चिंतन करें । इस सबसे आध्यात्म पथ पर आगे बढ़ने तथा सद्गुरु की प्राप्ति तथा पात्रता पाने हेतु तीव्र उत्कंठा , जिज्ञासा तथा हृदय में तड़प जागृत करने में विशेष सहायता प्राप्त हो सकती है । तभी हम अपने परम लक्ष्य की प्राप्ति में सफल हो सकते हैं । यह हमारा सौभाग्य है कि सद्गुरु स्वरूप श्री चच्चा जी सा० द्वारा प्रतिपादित सहज योग साधना को जनजन में पहुँचाने का कार्य सा० पूज्य डा० जयदयाल जी एवं पूज्य कृष्ण दयाल जी महाराज द्वारा किया जा रहा है ।
- डा० स्वामी जी
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