"परम संत श्री भवानीशंकर स्तुति "
~~~ श्री सद्गुरु चालीसा ~~~
(१७-०१-१९९४)
दोहा: श्री गुरुचरण सरोजरज निज मन मुकुर सुधार ।
वरनउ सद्गुरु विमल यंश जो दायक फलचार ॥
बुद्धिहीन तन जानिके, सुमिरौ गुण आभार ।
जिनके सुमिरन मात्र से जन होते भाव पार ॥
जय गुरुदेव ज्ञान गुण सागर । संत प्रवर तिहुँ लोक उजागर ॥ १ ॥
रघुवर राम भक्त बल धामा । कलिमल हरण ध्यान अभिरामा ॥ २ ॥
सदाचार रवि लोक प्रकाशी । चारु चरित्र कीर्ति अविनाशी ॥ ३ ॥
कुमति निवार सुमति शुभदाता । निज शरणागत भाग्य विधाता ॥ ४ ॥
पावन परम पवित्र सुवेशा । चिंतन चारु हरण भव क्लेशा ॥ ५ ॥
रघुवर किन्ही सदा बड़ाई । राम पद कमल प्रीति उर छाई ॥ ६ ॥
शरणागत गुरुवार यश गावैं । बिनु श्रम भुक्ति मुक्ति जन पावें ॥ ७ ॥
सुरनर साधक सिद्ध मुनीशा । नारद शारद सहित अहीशा ॥ ८ ॥
कवि कोविद ज्ञानी विज्ञानी । गावहिं सतत सुयश वर वानी ॥ ९ ॥
जीव मात्र के प्रभु उपकारी । भक्ति विमल दाता भ्रमहारी ॥ १० ॥
गुरुके शब्द मंत्रवत् राजैं । सिद्धि प्रदान करै सुख साजैं ॥ ११ ॥
रोम रोम रवि तेज विराजै । भ्रम तम तोम हरै छवि छाजै ॥ १२ ॥
निज गुरु वचन सदा अनुसरहीं । तृण कँह तरु कण कँह गिरी काहिं ॥ १३ ॥रामचन्द्र महिमा रखवारे । निज जन आस पुजावन हारे ॥ १४ ॥
दुर्गम काज जगत के जेते । श्री गुरुकृपा सुगम उनती तेते ॥ १५ ॥
सब सुख सुलभ देव की सरना । गुरु रक्षक तो कहु को डरना ॥ १६ ॥
आपन तेज सम्हारौं आपै । भव भय मूल हाँक ते कांपे ॥ १७ ॥
भूत पिसाच निकट नहीं आवै । श्री गुरुवर जब नाम सुनावैं ॥ १८ ॥
नासै रोग मिटै सब पीरा । जपत भवानी शंकर धीरा ॥ १९ ॥
संकट ते गुरुदेव छुड़ावें । मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ।। २० ।।
जिनके उर गुरु चरन विराजै । जग उनके यश का डंका वाजै ॥ २१ ॥
दास मनोरथ जो उर लावै । पूरन होई परम सुख पावै ॥ २२ ॥
गुरु प्रताप सब जग महँ व्यापा । विदित भवानी शम्भु प्रतापा ॥ २३ ॥
साधू संत के गुरु रखवारे । पाप ताप हर राम दुलारे ॥ २४ ॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । दीन अनाथों के पितु माता ॥ २५ ॥
राम रसायन गुरु के पासा । सदा राम रघुवर के दासा ॥ २६ ॥
श्री गुरु भजन राम को भावै । जनम जनम के दुःख बिसरावै ॥ २७ ॥
अंतकाल रघुवर पर जाई । श्रम बिनु जन्म चक्र मिटि जाई ॥ २८ ॥
और देवता चित्त न धरई । गुरुपद सेई सर्व सुख करई ॥ २९ ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै सद्गुरु मति धीरा ॥ ३० ॥
जय जय जय गुरुदेव गुसाईं । छमा करहुँ जन की लरिकाई ॥ ३१ ॥
जय जय जयति जयति राघावर । जय जय जयति भवानी शंकर ॥ ३२ ॥
जय जय बुंदेलखंड यशदाता । जय त्रिलोक भूषण जन त्राता ॥ ३३ ॥
जय रामायण मंत्र प्रकाशी । जय प्रकाश निधि जय अविनाशी ॥ ३४ ॥
शरणागत पालक उपकारी । असरन सरन मोह भ्रम हारी ॥ ३५ ॥
जय श्रीराम मंत्र के दाता । जय त्रिलोक भूषण जान त्राता ॥ ३६ ॥
नित्य पढ़ै जो सद्गुरु चालीसा । होई सिद्धि साखी गौरीसा ॥ ३७ ॥
दैहिक दैविक भौतिक तापा । श्री गुरुशरण न कहुँही व्यापा ॥ ३८ ॥
श्री गुरुदेव सहित गुरु माता । बसहिं दास उर जन गण त्राता ॥ ३९ ॥
जन पर कृपा करहु अविनासी । हरहु त्रिताप दास उर वासी ॥ ४० ॥
दोहा: श्रीगुरुवर संकट हरण , मंगल मोद निधान ।
गुरुमाता सह बसहु उर , करहु परम कल्याण ।।