
















सद्गुरु मिले अनेक फल, कहत कबीर विचार।।

तीर्थो की महिमा सभी शास्त्रो ने कही है। ये शास्त्र अनुभवी महात्माओ द्वारा लिखे गए है अतः माननीय है।तीर्थ में जाने का एक ही फल लिखा गया है और वह फल है कि तीर्थो में जाने से सत्संग मिलता है।निरन्तर सत्संग करने से सन्तो की प्राप्ति होती है।
सन्तों के सत्संग से चार फल प्राप्त होते है वे है धर्म, अर्थ ,काम, मोक्ष।इन चार फलो में प्रायः मनुष्य अर्थ यानी स्वार्थ की पूर्ति चाहता है और आगे सन्तों के मिलने पर भी वह अपना जीवन स्वार्थ में ही व्यतीत कर जाता है।यदि इससे आगे बढ़े तो वह धर्म की प्राप्ति करता है।
धर्म एक ऐसी वस्तु है उसका ठीक ठीक हृदय में अंकित होना आसान नही है।हृदय में धर्म के ठीक ठीक अंकित न होने से मनुष्य काम यानी वासनाओ के जाल में फंसकर रह जाता है और से निकलना भी आसान नही होता।
इसके पश्चात चौथा फल मोक्ष है जो बिना वासना रहित हुए कदापि सम्भव नही है।इसलिए सन्त के मिलने पर भी मनुष्य के लिए जीवन का ध्येय प्राप्त करना असम्भव नही तो कठिन अवश्य होता है।
इसलिए परमसन्त सद्गुरु कबीर साहब ने सद्गुरु की प्राप्ति से अनेक फल मिलना कहा है।अनेक माने वे फल जो गिनती से परे है।
सद्गुरु को प्राप्त कर मनुष्य भवसागर से पार नही होता,बल्कि जितने भी ब्रह्माण्ड है,उन सबके आगे ऐसे अभीष्ट मार्ग पर पहुँचता है जहां की यथार्थ में उसको पहुँचना चाहिए।"


















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