















जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई।"


हे गुरुदेव ! आपकी कृपा के बिना कोई आपको जान नही सकता।जब आपकी कृपा से भक्त आपको जान लेता है फिर वह इधर उधर भटकना छोड़ कर आपमे पूर्ण रूप से समर्पित हो जाता है।
आप अपने दीनो पर दया करने वाले स्वभाव से सदैव अपने भक्तो के हृदय को शीतलता प्रदान करने वाले है।
हम सब आपको हृदय से प्रणाम करते है एवम् प्रार्थना करते है कि आप हम सबके हृदय में विराजमान हो तथा सभी पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखे।"



















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