
















प्रेमाप्लावित ह्रदयौ ,सदापरहितरतवरकरौ।
सदासेवा सन्नद्धौ,मृदलावपि पादम्बुजौ,
एवम् गुरुदेवः ह्रदय मम निवसतु सदा ।।
अर्थात–
परम् पूज्य गुरुदेव यानि चच्चा जी महाराज प्रकृति से ब्रह्मलीन थे फिर भी उनकी आँखों में दया ,ममता और करुणा पूरी पूरी भरी हुई थी,पूरी पूरी टपकती थी।उनका हृदय प्रेम से बिलकुल लबालब भरा हुआ था,उनके हाँथ हमेशा दूसरे की सेवा में तल्लीन रहते थे।
परम् पूज्य चच्चा जी महाराज के चित्र में आप देख रहे है चच्चा जी महाराज धोती कुर्ता पहने हुए है,कन्धे पर गमछा डाले हुए है।पैरो में जूते पहने हुए हुए है,हाँथ में छड़ी लिए हुए है और एक पैर हल्का सा आगे है।
इस मुद्रा को देखकर लगता है जैसे वो बिलकुल कही जाने वाले है।
इस मुद्रा को देखकर लगता है जैसे वो बिलकुल कही जाने वाले है।
भक्तवत्सल,दीनदयाल प्रभु जायेंगे कहाँ?इनका तो केवल एक ही काम है दूसरे की पीड़ा का निवारण कैसे हो?अगर पूज्य चच्चा जी महाराज कही जा भी रहे होंगे तो किसी की पीड़ा को दूर करने के लिए ही जा रहे है।जिस किसी भक्त पर कष्ट पड़ा होगा उसी कष्ट निवारण के लिए तुरन्त चलने को तैयार है।हमेशा सेवा के लिए बिल्कुल तत्पर सन्नद्ध खड़े है।
यही उनका मार्ग था,जिस किसी ने हृदय से उनको याद किया उसकी सहायता के लिए उनको तत्काल चलना ही है।
ऐसे समर्थ सदगुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज के बारे में कुछ भी कहना शब्दों की परिधि के बाहर है ।फिर भी उनके स्वरूप की किंचित मात्र भी झलक मै उनके भक्तो के समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ, ऐसा मेरा प्रयास है। वे दयालु एवम् कृपालु गुरु महाराज सदैव हम सबके हृदय में निवास करे,ऐसी मेरी उनसे विनम्र प्रार्थना है।"



















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