
















कृपा अहैतुक पावन हारे।
निज जन अजहूँ उन्हें अति प्यारे,
बिगरी अबहु बनावन हारे।
निज कह भाव से बाँधन हारे,
सुमिरत ही प्रभु साथ हमारे।

ऐसा नही है केवल चर्चा में ही किसी ने चच्चा जी को सुना और अप्रत्यक्ष रूप से ही उसके मन में श्रद्धा हो गयी तो उसने भी अगर मुसीबत के समय याद किया तो चच्चा जी महाराज उसकी भी मुसीबत हल करने के लिए दौड़ पड़े ,ऐसे अनेक उदाहरण है।
ये एक बहुत बड़ी विलक्षणता थी कि इतने से भी सम्पर्क पर उनसे आध्यात्मिक शक्ति का सञ्चालित होना ये दिखाता है कि वे आध्यात्मिक शक्ति महासागर थे कि जहाँ जरा भी भाव की हलचल हुई उनकी शक्ति ने कार्य करना आरम्भ कर दिया।सबको कृपा मिली चाहे उन्हें जैसे जाना और समझा हो।
जब चच्चा जी महाराज का शरीर छूट गया तब भक्तो के मन में यह विचार आया अब हमारी समस्या कौन सुनेगा कौन हमे मुसीबत से बचाएगा जो स्वभाविक था लेकिन वास्तव में ऐसी बात नही थी।
चच्चा जी महाराज के यहाँ तो केवल भाव का खेल था जो अपने ख्याल में श्रद्धा भाव से उन्हें ले आया उसने लाभ उठाया।जब वे शरीर धारण किये थे उस समय उन्हें जितने अपने भक्त प्यारे थे उतने ही आज भी उन्हें अपने भक्त प्यारे है और आज भी सबकी बिगड़ी बनाते है बल्कि अब और प्रभावशाली ढंग से बिगड़ी बनाते है क्योकि तब तो शरीर की कुछ न कुछ सीमाये अवश्य रही होंगी ,अब तो वे सीमाये भी नही है।"



















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