

















देव यह बर मांगही।
मन वचन कर्म बिकार तजि,
तव चरन हम अनुरागही।"

परम् पूज्य गुरुदेव ! आप से यह प्रार्थना है कि आप हम पर इतनी कृपा करे कि हम सब मन,वचन और कर्म से विकारो को त्याग कर आपके श्री चरणों में ही प्रेम करे,क्योकि आपकी कृपा के बिना मन वचन और कर्म इन तीनो पर नियंत्रण किया ही नही जा सकता।"
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