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Friday, 27 October 2017

ईश्वर के प्रति प्रेम का अर्थ है सबमे ईश्वर का रूप देखना

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
🌻*-🌷-🌷-🌷-*🌻
🌻"परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज की साधना के बारे में बताते हुए पूज्य पापाजी कहते थे कि–

"परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी साहब ने साधना को प्रमुखत:सदाचार आधारित बनाया तथा सभी क्षेत्रो के लिए सदाचार की व्यवस्था और प्रतिष्ठा की और इसका दृढ़ता से पालन करने करने को कहा । ईश्वर के प्रति प्रेम का अर्थ है सबमे ईश्वर का रूप देखना ।

इस बारे में विस्तार से समझाते हुए पापाजी ने बताया कि जब हम सबमे ईश्वर का रूप देखने के लिए प्रयासरत होंगे तब दोष दृष्टि नही रहेगी अर्थात हम दूसरो के दोषो को नही देखेंगे,जिससे स्वतः हृदय में प्रेम जाग्रत होने लगेगा । धीरे धीरे हृदय प्रेम से भर जायेगा ,जहां प्रेम है वहाँ ईश्वर स्वयम प्रकट होकर साधक के हृदय में अपना निवास बनाएंगे ।

जैसा कि 'राम चरितमानस 'में कहा है -
🌻"हरि व्यापक सर्वत्र समाना,
प्रेम से प्रकट होंहि मैं जाना।"🌻
साधना का तत्व और उसकी सिद्धि ईश्वर से प्रेम है ।सिद्धि प्रदर्शन और उसके विधान में हेर फेर करना बाधक है ।
सद्गुरु भविष्य दृष्टा हैं ,इस सम्बन्ध में वे ही उचित निर्णय ले सकते है।"🌻
🌻*🌷परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे ।🌷*🌻
🌻🌻🌻🌻🌻( क्रमशः)🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

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