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Tuesday, 24 May 2016

भाग - ५ - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज की विशेष कृपा से उन पर रचित "श्री चच्चा चरितम्"(चच्चा चालीसा) की श्रृंखला की आगे की चौपाइया प्रस्तुत है–
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"पत्नी संग विचार यह कीन्हा,
लेहु विराग यह निर्णय कीन्हा।
मर्माहत दम्पति गृह त्यागा,
सद्गुरु सन्त मिले मन लागा।"
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"पूज्य चच्चा जी महाराज एवम् उनकी धर्मपत्नी दोनों ने (भतीजे के देहांत के पश्चात )आपस में परामर्श करके यह निर्णय लिया कि अब जीवन बेकार है और सन्यास ले लिया जाये।किसी सद्गुरु सन्त की शरण में शेष जीवन सन्यास के रूप में बिता दिया जाये।बिल्कुल टूटे हुए दिल से दोनों ने घर छोड़ दिया इस आशा से कि जल्दी ही कोई सद्गुरु सन्त मिल जाये और उन्ही के चरणों में जीवन बिता दिया जाये।यहाँ से पूज्य चच्चा जी महाराज की गुरु की तलाश प्रारम्भ होती है। 
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परम् पूज्य गुरुदेव से प्रार्थना है कि वे हम सबको सदाचार एवम् कर्तव्य पालन के मार्ग पर चलने की शक्ति एवम् सामर्थ्य प्रदान करे।
🌷🌷🌷"यह गुन साधन ते नहि होई,
तुम्हरी कृपा पाय कोइ कोई।"

🌹🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)**********


 -  व्यवहारिक आध्यात्म  (http://www.vyavaharikaadhyatm.com/)

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