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Thursday, 26 May 2016

भाग - ३ - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज पर रचित 'श्री चच्चा चालीसा' की अगली कुछ चौपाइया व्याख्या सहित प्रस्तुत है--

🌷🌷🌷"मातु पितहि परलोक सिधारे,
अल्प काल सब कष्टन धारे।
बाल काल मन दृढ जिज्ञासा,
मिलिहै प्रभु यह अटल विश्वासा।
एहि विश्वास भये प्रभु लीना,
सब दुःख कष्ट नष्ट कर लीन्हा।
सदाचार मय जीवन कीन्हा,
प्रेम सचाई व्रत धर लीन्हा। " 


परम् पूज्य चच्चा जी महाराज के बचपन में ही उनके माता पिता का देहांत हो गया।बड़े कष्टो ने उन्हें घेर लिया।लेकिन इन कष्टो से वे परास्त नही हुए बल्कि इन कष्टो के साथ साथ उनके मन में ईश्वर के प्रति विश्वास और जिज्ञासा बलवती होती गयी और बाल्य काल में ही उनके मन में यह दृढविश्वास जम गया कि एक दिन प्रभु अवश्य ही मिलेंगे। इस विश्वास के साथ वे बचपन में ही प्रभु में लीन से हो गए जिसके फलस्वरूप जो कष्ट व् दुःख उन्हें मिल रहे थे उन सबका प्रभाव उन्होंने नष्ट सा कर दिया था। सदाचार से परिपूर्ण उनका जीवन था। प्रारम्भ से ही प्रेम और सच्चाई को अपने जीवन का व्रत बना लिया था,तो इस प्रकार की आध्यात्मिकता की पृष्ठभूमि के साथ उन्होंने अपने जीवन का शुभारम्भ किया।"🌻🌻🌻🌻

🌻*🌷*परम् पूज्य चच्चा जी महाराज के श्री चरणों में हम सबका कोटि कोटि प्रणाम।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)**********  




 -  व्यवहारिक आध्यात्म  (http://www.vyavaharikaadhyatm.com/)


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