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Tuesday, 31 May 2016

भाग - ४ - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
🌻*-🌷-🌷-🌷-* 
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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज पर रचित 'श्री चच्चा चालीसा' की चौपाइया व्याख्या सहित प्रस्तुत की जा रही है। 
उसी श्रृंखला में आगे की कुछ चौपाइया प्रस्तुत है–

🌷🌷🌷 

"एहि भांति कछु समय बिताये,
फिर प्रभु झाँसी नगर में आये।
निज दम्पति संग भ्रातज लाये,
संग अपने रख उसे पढ़ाये।
प्रभु कह भ्रातज था अति प्यारा, 
जो असमय परलोक सिधारा।
भ्रातज दुःख मन हृदय विदारा,
प्रेम मूर्ति कह सूल अपारा। "


🌷फिर परम् पूज्य चच्चा जी महाराज झाँसी आये और वहाँ उनके साथ एक ऐसी घटना घटी जिसने उनको अन्तरिम रूप से आध्यात्मिकता की ओर पूरी तरह से मोड़ दिया।हुआ यह कि वे झाँसी में अपने साथ अपने भतीजे को ले आये और उसे पढ़ाने लगे,उससे उन्हें बहुुत स्नेह था।लेकिन उसका असमय बीमारी से देहांत हो गया। जिससे उनके अंदर वैराग्य उत्पन्न हो गया न केवल उनके मन में बल्कि उनकी धर्मपत्नी के अंदर भी वैराग्य जाग्रत हो गया।परम् पूज्य चच्चा जी महाराज जो कि प्रेम की मूर्ति थे उनके इस दुःख का अनुमान लगाना भी सहज सम्भव नही है।"


 🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌻*🌷परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज से प्रार्थना है कि वे सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रहे।***********************
🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)...........................


 -  व्यवहारिक आध्यात्म  (http://www.vyavaharikaadhyatm.com/)


 

Thursday, 26 May 2016

भाग - ३ - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
🌻*-🌷-🌷-🌷-* 
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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज पर रचित 'श्री चच्चा चालीसा' की अगली कुछ चौपाइया व्याख्या सहित प्रस्तुत है--

🌷🌷🌷"मातु पितहि परलोक सिधारे,
अल्प काल सब कष्टन धारे।
बाल काल मन दृढ जिज्ञासा,
मिलिहै प्रभु यह अटल विश्वासा।
एहि विश्वास भये प्रभु लीना,
सब दुःख कष्ट नष्ट कर लीन्हा।
सदाचार मय जीवन कीन्हा,
प्रेम सचाई व्रत धर लीन्हा। " 


परम् पूज्य चच्चा जी महाराज के बचपन में ही उनके माता पिता का देहांत हो गया।बड़े कष्टो ने उन्हें घेर लिया।लेकिन इन कष्टो से वे परास्त नही हुए बल्कि इन कष्टो के साथ साथ उनके मन में ईश्वर के प्रति विश्वास और जिज्ञासा बलवती होती गयी और बाल्य काल में ही उनके मन में यह दृढविश्वास जम गया कि एक दिन प्रभु अवश्य ही मिलेंगे। इस विश्वास के साथ वे बचपन में ही प्रभु में लीन से हो गए जिसके फलस्वरूप जो कष्ट व् दुःख उन्हें मिल रहे थे उन सबका प्रभाव उन्होंने नष्ट सा कर दिया था। सदाचार से परिपूर्ण उनका जीवन था। प्रारम्भ से ही प्रेम और सच्चाई को अपने जीवन का व्रत बना लिया था,तो इस प्रकार की आध्यात्मिकता की पृष्ठभूमि के साथ उन्होंने अपने जीवन का शुभारम्भ किया।"🌻🌻🌻🌻

🌻*🌷*परम् पूज्य चच्चा जी महाराज के श्री चरणों में हम सबका कोटि कोटि प्रणाम।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)**********  




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Tuesday, 24 May 2016

भाग - ५ - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज की विशेष कृपा से उन पर रचित "श्री चच्चा चरितम्"(चच्चा चालीसा) की श्रृंखला की आगे की चौपाइया प्रस्तुत है–
🌷🌷🌷
"पत्नी संग विचार यह कीन्हा,
लेहु विराग यह निर्णय कीन्हा।
मर्माहत दम्पति गृह त्यागा,
सद्गुरु सन्त मिले मन लागा।"
🌻🌻🌻

"पूज्य चच्चा जी महाराज एवम् उनकी धर्मपत्नी दोनों ने (भतीजे के देहांत के पश्चात )आपस में परामर्श करके यह निर्णय लिया कि अब जीवन बेकार है और सन्यास ले लिया जाये।किसी सद्गुरु सन्त की शरण में शेष जीवन सन्यास के रूप में बिता दिया जाये।बिल्कुल टूटे हुए दिल से दोनों ने घर छोड़ दिया इस आशा से कि जल्दी ही कोई सद्गुरु सन्त मिल जाये और उन्ही के चरणों में जीवन बिता दिया जाये।यहाँ से पूज्य चच्चा जी महाराज की गुरु की तलाश प्रारम्भ होती है। 
🌻*🌷* 
परम् पूज्य गुरुदेव से प्रार्थना है कि वे हम सबको सदाचार एवम् कर्तव्य पालन के मार्ग पर चलने की शक्ति एवम् सामर्थ्य प्रदान करे।
🌷🌷🌷"यह गुन साधन ते नहि होई,
तुम्हरी कृपा पाय कोइ कोई।"

🌹🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)**********


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भाग - २ - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

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🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज के जीवन चरित एवम् अध्यात्म मार्ग पर लिखी हुई 'श्री चच्चा चालीसा'की चौपाइयो की व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है। उसी श्रृंखला में आगे की चौपाइया प्रस्तुत है–


🌷🌷 

"एकहि बात रहै मति मेरी,
निज परिजन पर प्रीति घनेरी।
अतः प्रकृतिवश क्षमा वे करिहै, 
जदपि दास पर अवसि वे हसिहै।
चरित रहा जिनका अति नीका,
राम दयाल गृह जन्म गृहीता।।"


इन चौपाइयों में चालीसा के रचयिता( श्री ओम प्रकाश जी) का यह मानना है कि चच्चा जी महाराज के जीवन चरित की गूढ़ता एवम् व्यापकता को चालीस चौपाइयों में बांधना सम्भव नही है फिर भी परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज के ऊपर चालीसा लिखने की धृष्टता मैंने की है तो वो एक विश्वास के साथ कि अगर चालीसा लिख भी देंगे तो वे अपने स्वभाव वश,क्योकि उनका स्वभाव सबको माफ करने का था, तथा वे सबको बहुत प्रेम करते थे,चालीसा लिखने की धृष्टता कर रहा हूँ,मेरी इस धृष्टता को वे क्षमा कर देंगे हालाँकि अपने स्वभाववश थोडा हँस लेंगे कि यह क्या कर रहा है।


पूज्य चच्चा जी महाराज के पिताजी का नाम श्री रामदयाल जी था।उनको विरासत में बहुत ऊँचे संस्कार प्राप्त हुए।उनके पिता जी के बारे में यह प्रसिद्ध था कि वे जब अपने मोहल्ले के आस पास पता कर लेते थे कि सबने भोजन कर लिया है तब दोपहर बाद वे भोजन करते थे। इतने उच्च कोटि के संस्कार उन्हें विरासत में मिले थे ऐसे माता पिता पाना भी बहुत भाग्य की बात है जो चच्चा जी महाराज को ईश्वर ने प्रदान की थी।"


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🌻*🌷*परम पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)******



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Saturday, 21 May 2016

भाग - १ - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज की पावन स्मृति में आज से नई श्रृंखला प्रारम्भ की जा रही है जिसमे अगले कुछ दिनों तक"श्री चच्चा चालीसा" की चौपाइयों का वर्णन प्रस्तुत करने का प्रयास किया जायेगा । जिससे पूज्य गुरुदेव के भक्त एवम् जिज्ञासु लोग उनके जीवन चरित के साथ साथ उनकी आध्यात्मिक कार्य प्रणाली के बारे में जान सके और लाभान्वित हो सके।अतः श्री चच्चा चालीसा की चौपाईया व्याख्या सहित प्रस्तुत है-
 
🌻"सर्वप्रथम मङ्गलाचरण तत्पश्चात चौपाइया-


🌷🌷🌷"सब दोषन के नाश को,
है अति सरल उपाय।
गुरु चरनन में मन रहे ,
सब ही होय सहाय।।


🌷🌷🌷मङ्गलाचरण में सर्वप्रथम सभी देवी देवताओ की वन्दना की गयी है कि सब ऐसी कृपा करे कि गुरु जी के चरणों में मन लगा रहे और एक बार गुरूजी के चरणों में मन लग गया तो फिर आगे सब कुछ अपने आप ही होता चला जायेगा।


🌷बंदऊ चच्चा पद जलजाता ,
जेहि सुमिरत अघ सब मिट जाता।
जासु चरित समझा नहि कोई
तेहि वर्णन कहुँ केहि विधि होई।।


🌻व्याख्या–परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज के चरण कमलो की वन्दना करता हूँ जिनके स्मरण मात्र से सारे पाप नष्ट हो जाते है।पूज्य चच्चा जी महाराज को कोई समझ नही सका ऐसा मेरा मत है क्योकि वे इतने बड़े सन्त थे और देखने में उतने ही साधारण व्यक्ति इसका दुर्लभ सामन्जस्य एक साधारण कोटि के मनुष्य की बुद्धि से परे था। इसलिए चच्चा जी महाराज की वास्तविक आध्यात्मिक स्थित का भान उनके करीब से करीब रहने वालो को भी शायद ही हो पाया। तो ऐसी दुर्लभ आध्यात्मिक स्थिति के स्वामी के बारे में कुछ भी लिखना शायद सम्भव ही नही क्योकि उनकी आध्यात्मिक स्थिति को तो शब्दों की परिधि में बांधा ही नही जा सकता।.......


🌻*🌷* परम् पूज्य गुरुदेव हम सबके अपराधो को क्षमा करते हुए हम लोगो पर अपनी कृपा दृष्टि बनाया रखे,ऐसी हम लोगो की उनसे विनम्र प्रार्थना है।🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)


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Sunday, 15 May 2016

मंजिल - आई० के० एस० , समाधि स्थल, उरई

संत- इस शब्द को सुनने पर एक ऐसे इन्सान का अक्स उभरता है जो धर्म, जाति, ऊँच-नीच सभी से जुदा होता है, वह सिर्फ और सिर्फ परम पिता परमात्मा से जुड़ा होता है  
जैसा कि गुरू नानक देव जी महाराज फरमाते हैं -
                                "सब घट मेरा सांईयां, सूनी सेज ना कोय
              बलिहारी वा घट की, जा घट परगट होय ।।"
अर्थात् परमात्मा तो सभी में है, परंतु उस इन्सान को शत-शत नमन है जिसमें वह प्रकट रूप में है

                                इस संसार में जितने भी संत (समर्थ परिपूर्ण संत) हुए हैं, उन्होंने लोगों को उस रास्ते पर चलने को कहा है जिसकी मंजिल परमपिता परमात्मा है इन सभी महापुरुषों का मानना है कि जप, तप, पूजा, व्रत इत्यादि से शुरूआत करके आगे चलकर आत्मशुद्धि पर ही बल देना चाहिए जैसे कोई बच्चा नर्सरी क्लास में एडमिशन ले और उम्र भर उसी क्लास में पढ़ता रहे तो क्या कहलायेगा इसी प्रकार जीवन भर मूर्ति पूजा, व्रत इत्यादि में ही उलझे रहे तो आत्म उन्नति कैसे होगी ?

                                प्रभु का स्मरण अर्थात् ध्यान अति आवश्यक है जितना अधिक समय हम भजन ध्यान में गुजारते हैं, उतना ही हमारा मन शुद्ध होता जाता है माला फेरने, व्रत, उपवास से अहंकार चाहे बढ़ जाये, प्राप्त कुछ नहीं होता हमारे पवित्र ग्रंथ जिन महापुरूषों द्वारा लिखे गये हैं वो उनका अपना अनुभव था इन ग्रंथों का अध्ययन करने से हमें रास्तों का पता तो चल जाता है परंतु कदम हमें ही उठाना होगा। ग्रंथों का सिर्फ पठन-पाठन करने से हमारी स्थिति उस चण्डूल पक्षी की तरह होगी जो तोते की भांति जो भी सुनता है उसकी नकल करने लगता है, परन्तु अनुभव कुछ नहीं है  
श्री तुलसी साहब (आगरा) का कथन है -
"चार अठारह नौ पढ़े, षट पढ़ खोआ मूल

सुरत शब्द चीन्हे बिना, ज्यों पंछी चण्डूल"
                              यदि हम यह सोचें कि शास्त्रों के शब्दों को याद कर दोहराने से परमात्मा को जान जायेंगे, भ्रम है शास्त्र कंठस्थ कर लेने से परमात्मा की तरफ एक कदम भी नहीं उठता बल्कि उठते हुए कदम भी रूक जाते हैं श्रीकृष्ण, श्री महावीर स्वामी, जीसस क्राइस्ट, श्री गौतम बुद्ध इत्यादि ने जो शब्द हम तक पहुँचाए हैं वो अपने अनुभव द्वारा ही पहुँचाए हैं


                                परमात्मा को पाने के लिए जीवित सद्गुरू का होना अति आवश्यक है वह एक Power House की तरह होता है जो कि Supreme Power House [God], से करेण्ट लेकर हम तक विद्युतधारा पहुँचाता है जिससे हम भी Charge होकर उस रास्ते पर चलकर उस Supreme Soul से जुड़ जायें इस प्रक्रिया में शिष्य का पूरा समर्पण आवश्यक है परम पूज्य चच्चाजी महाराज कहते हैं कि "आध्यात्मिक विद्या गुरू गम्य है इसे सिर्फ पुस्तकों से नहीं सीखा जा सकता " श्री कबीर साहब और हजरत बहादुदीन साहब ने यही उपदेश दिया कि कुछ ना करो बस गुरू से मोहब्बत का नाता जोड़ लो
                               
                 परम संत डाॅ. चतुर्भुज सहाय जी ने अपनी पुस्तक  "साधना के अनुभव" में लिखा है कि कुछ लोग कहते हैं कि जब समय आवेगा और भगवान की दया होगी तो स्वयं ही बुला लेंगे यह आत्म प्रवंचना और मूर्खता की बात है संसार के सारे कर्म हम अपनी मर्जी और अहं बुद्धि से करते हैं और भजन करने के लिए यह बहाना ढूँढ़ते हैं  वर्ष भर मनाये हमने तीज और त्यौहार फिर भी ना बदले हमारे आचरण और व्यवहार

                                सभी संतों का यही मत है कि जो समय हमारा गुरू परमात्मा के ख्याल में गुजरे वही सार्थक है, बाकि हर सांस बेकार है इस संसार में सिर्फ परम पिता परमात्मा ही हैं जो Judgemental नहीं होता, वो हमारी अनगिनत कमियों और पापों के साथ हमें स्वीकारता है और प्रेम करता है, वरना इस दुनिया के जितने भी रिश्ते हैं वो हमारे ऊपरी और दिखावटी व्यवहार पर बनते और बिगड़ते रहते हैं अतः ये परम सत्य है कि सतगुरू द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलकर ही हम अपनी असली मंजिल तक पहुँच सकते हैं, क्योंकि जीवन की सरिता प्रभु के सागर तक पहुँचे इसी में मनुष्य का जन्म सफल है