
















प्रत्येक साधक /शिष्य का अपने गुरुदेव में ऐसा ही समर्पण होना चाहिए।
इसके साथ ही उसे अपने सभी सांसारिक रिश्तों के प्रति भी सजग रहते हुए कर्तव्य पालन करते हुए अपने गुरुदेव में पूर्ण समर्पित भाव से साधना करनी चाहिए।
इस प्रकार गुरुदेव के बताये हुए मार्ग पर चलने से गुरुदेव को अहैतुकी कृपा के साथ साधक की तरक्की अबाधित गति से होती है।"
इस प्रकार गुरुदेव के बताये हुए मार्ग पर चलने से गुरुदेव को अहैतुकी कृपा के साथ साधक की तरक्की अबाधित गति से होती है।"



















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