Like on FB

Tuesday, 28 June 2016

भाग - ९ - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
🌻*-🌷-🌷-🌷*🌻

परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज के जीवन चरित एवम् महात्म्य पर आधारित 'श्री चच्चा चालीसा' श्रृंखला की आगे की चौपाइया प्रस्तुत है --
🌷🌷🌷 

"लखि गुरुतर दायित्व गुरु के,
लाला सन कह वचन हृदय के।
नाथ मोहि निज चरनन रखिये,
यह दायित्व औरन कह दीजै।
है अति कठिन काज यह स्वामी,
सब तुम जानहु अन्तर्यामी।"
🌻🌻🌻 

परम् पूज्य चच्चा जी महाराज ने यह देखा कि गुरु का कार्य साधारण कार्य नही है यह तो कर्तव्यों और दायित्वों से भरा हुआ है,एक बार भी जिसने भाव से स्मरण करके अपने को समर्पित कर दिया ऐसे प्रत्येक शिष्य के जीवन के प्रत्येक क्षण का अनवरत अनुश्रवण करना।यह बड़े दायित्व की बात है।उन्होंने अपने ह्रदय के वचन लालाजी महाराज से कहे कि प्रभु मुझे तो आप अपने चरणों की शरण में रखिये और ये गुरु बनने का दायित्व किसी और को दे दीजिये।प्रायः लोग बाहरी चमक दमक देखकर गुरु बनने के चक्कर में रहते है ।पुनः उन्होंने लालाजी महाराज से कहा कि आप तो स्वयम अन्तर्यामी है।मुझे तो अपने चरणों का अमृत रसपान करने दे।
🌻🌻🌻🌻*🌷 
*परम् पूज्य गुरुदेव सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखे।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)******



 -  व्यवहारिक आध्यात्म  (http://www.vyavaharikaadhyatm.com/)

No comments:

Post a Comment