Like on FB

Saturday, 9 July 2016

भाग - १० - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
🌻*-🌷-🌷-🌷-*🌻

परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज के पुत्र परम् सन्त श्री कृष्णदयाल जी (पापाजी)सत्संग एवम् सेवा को ध्येय बनाते हुए उनके बताये हुए मार्ग पर चलते हुए सबका मार्ग दर्शन करते रहे।पूज्य पापाजी की प्रेरणा एवम् उनके संरक्षकत्व में श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव जी ने 'चच्चा चरितम्' (चालीसा) की रचना की जिसमे उन्होंने बहुत सुंदर सरल एवम् मार्मिक शब्दों में पूज्य चच्चा जी महाराज के दर्शन की विवेचना की है।यह कृति गुरुदेव की विशेष कृपा से ही सम्भव हो पायी है।पिछले कुछ दिनों से इस विशिष्ट एवम् महत्वपूर्ण कृति 'श्री चच्चा चरितम्' की व्याख्या सहित प्रस्तुति की जा रही है उसी श्रृंखला में अब आगे की चौपाइया प्रस्तुत है-
🌷🌷🌷

"तब लाला प्रबोध अस कीन्हा,
सकल रहस्य सुबोध कर दीन्हा।
मत समझहु तुम करिहहु भाई,
सोच सोच वृथा अकुलाई।
जे तुम्ह तनिकउ प्रीति करिहे,
तिनकी रखवारी हम करिहै।
तब तै पर दुःख हरन मगन भये,
सुमिरत सेवक नष्ट भये।
🌻🌻🌻 

परम् पूज्य चच्चा जी महाराज के अंतर्मन की स्थिति का आकलन करने के बाद पूज्य लालाजी महाराज ने उनसे कहा-अरे यह तुम क्या कह रहे हो।लालाजी महाराज ने इस मार्ग की आध्यत्मिक क्रियाविधि को पुनः चच्चा जी के सामने स्पष्ट करते हुए कहा कि जो तुमको जरा भी चाह ले,जरा भी सम्पर्क करेगा,जरा भी स्मरण करेगा उसकी चौकीदारी मै करूँगा।बहुत बड़ी बात है।पूज्य चच्चा जी एवम् पूज्य लालाजी महाराज के मार्ग की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि जिसने ख्याल मात्र से उनसे सम्पर्क कर लिया बस उसका सारा जीवन उनका हो गया और जब कोई विशेष परिस्थिति आएगी या ऐसे कोई संस्कार होंगे जिन्हें काटा न जा सके तो अंत में गुरुदेव उन संस्कारो को उसके जीवन के उस भाग को स्वयम अपने ऊपर ले कर भोग लेंगे।यह एक बहुत बड़ी बात है।इसलिए कहा गया है कि इस मार्ग में शिष्य को कुछ नही करना है ।इतना स्पष्ट आश्वासन मिलने के बाद पूज्य चच्चा जी महाराज ने बड़े मनोयोग से बड़े समर्पण के साथ आध्यात्मिक सेवा प्रारम्भ की।बल्कि यह कहा जाये की उन्होंने परपीड़ा निवारण एवम् पर दुःख कातरता से प्रेरित होकर उसमे डूबकर आध्यात्मिकता को लुटाना शुरू किया।जीवन के प्रत्येक क्षण एक ही उद्देश्य रहा कि कैसे दूसरे की पीड़ा को दूर किया जाये।सबका यही विश्वास है की मुसीबत आई चच्चा जी महाराज से कहा फिर मुसीबत जाने चच्चा जी जाने।पूज्य चच्चा जी महाराज के सुमिरन मात्र से भक्तो के कष्ट मिटने लगे क्योकि सुमिरन केवल एकपक्षीय नही था।एक पक्ष में भक्त का सुमिरन और दूसरे पक्ष में चच्चा जी महाराज का अनुश्रवण था।सुमिरन करने वाले ने उनका ख्याल किया आध्यात्मिक प्रक्रिया पूरी हुई।जिसने सुमिरन किया उसका कष्ट कटा।"************🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 
🌷*परम् पूज्य गुरुदेव के श्री चरणों में हम सबका कोटि कोटि प्रणाम।🌻🌻🌻🌻🌻(क्रमशः)******

 -  व्यवहारिक आध्यात्म  (http://www.vyavaharikaadhyatm.com/)

No comments:

Post a Comment