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Wednesday, 15 June 2016

भाग - ७ - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज पर रचित श्री चच्चा चालीसा श्रृंखला की आगे की प्रस्तुति–

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"वृथा परिश्रम दिवस गंवाये,
नहि कोऊ सद्गुरु सम मन भाये।
मौनी सन्त ऋषिकेश निवासा,
भ्रमत भ्रमत प्रभु पहुचेउ पासा।
कहेऊ सन्त कलिकाल है भाई,
दुर्लभ गुरु पारस की नाई।
विषयी व्यक्ति वेश धर लीन्हा,
जेहि सर्वत्र प्रदूषण कीन्हा।
वापस होहु गृहस्थ में भाई,
जह समरथ सद्गुरु तुम पाई।"


🌻🌻🌻परम् पूज्य चच्चा जी महाराज ने बहुत से सन्तों की तलाश की अंत में सन्तों की खोज करते करते वे ऋषिकेश पहुँचे,वहाँ एक पहुँचे हुए मौनी सन्त से उनकी मुलाकात हुई।मौनी सन्त ने चच्चा जी महाराज से लिख कर बात की और स्पष्ट शब्दों में कहा कि जिसकी तलाश तुम कर रहे हो वो तुम्हे जंगलो में तीर्थो और मन्दिरो में नही मिलेगा।वह कोई गृहस्थाश्रम का व्यक्ति होगा वही तुम्हारा कल्याण करेगा और तुम्हारे माध्यम से लाखो लोगों का कल्याण होगा।तुम वापस उसी गृहस्थाश्रम में लौट जाओ।उन मौनी सन्त ने यह भी कहा यह कलिकाल है और इस समय सद्गुरु मिलना पारस की तरह दुर्लभ है।सामान्यतः विषयी लोग है जिन्होंने वेश रख लिया है जो केवल लोगो को ठग रहे है और प्रदूषण फैला रहे है।ऐसे ही लोगों का बाहुल्य है।चच्चा जी महाराज को मौनी सन्त की सलाह अच्छी लगी और एकदम से उनके मानस पटल पर अंकित हो गयी उन्होंने निर्णय लिया कि बस अब गृहस्थाश्रम में वापस होना है।और जैसाकि मौनी सन्त ने कहा था कि वही तुमको गुरु मिलेंगे।अतः चच्चा जी महाराज गृहस्थाश्रम लौट आये।"

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🌻*🌷* हे परम् पूज्य गुरुदेव आपकी जय हो।जय हो।जय हो।******************
🌹🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)************   


 -  व्यवहारिक आध्यात्म  (http://www.vyavaharikaadhyatm.com/)

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