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Tuesday, 7 June 2016

भाग - ६ - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज,परम् पूज्य पापाजी एवम् सभी सन्तों को व्यवहारिक अध्यात्म परिवार की तरफ से कोटि कोटि प्रणाम।******

प्रस्तुत है 'श्री चच्चा चालीसा 'श्रृंखला की आगे की चौपाइया व्याख्या सहित–
🌷🌷🌷
चलत चलत चित्रकूटहि आये,
सन्त श्री रामनारायण पाये।
चच्चा दम्पति देख चकित भये,
रामनारायण पुलकित भये।
अतिथि दम्पति कह आसन दीन्हा,
बारम्बार नमन है कीन्हा।
बोलेउ आज सिया रघुराई ,
आये है मोरे गृह भाई।
चच्चा कहेउ उपदेसहु ताता,
सन्त कहेउ स्वयम प्रभु भ्राता।
मै तुम्ह कह उपदेसहु स्वामी,
आज धन्य मोहि कीन्ह भवानी।
🌻🌻🌻

परम् पूज्य चच्चा जी महाराज एवम् अम्मा जी (चच्चा जी महाराज की धर्मपत्नी, जिन्हें लोग अम्माजी के नाम से सम्बोधित करते थे) सन्तों की खोज में सबसे पहले चित्रकूट पहुँचे। वहाँ सन्त श्री रामनारायण जी से उनकी भेंट हुई, जो बहुत पहुँचे हुए सन्त थे।चच्चा जी महाराज ने सोचा इन्हें ही अपना गुरु बना लिया जाये। इस आशय से वे उनकी कुटिया में पहुँचते है, वहाँ पर दृश्य एकदम उल्टा हो जाता है। चच्चा जी महाराज गए थे उन्हें गुरु बनाने किन्तु चच्चा जी महाराज एवम् अम्मा जी को देखकर श्री रामनारायण जी भाव विह्वल हो गए और उनकी आरती उतारने लगे और पैर छूने लगे। बार बार उनको नमन करने लगे तथा बोले आज तो मेरे घर साक्षात् राम और सीता आये है। चच्चा जी महाराज ने कहा मै तो आपको गुरु बनाने आया हूँ,मुझे उपदेश दीजिये। श्री रामनारायण जी बोले मै तुम्हे उपदेश दूँ यह सम्भव नही है तुम स्वयम ईश्वर के बहुत बड़े अंश हो मै तुम्हे क्या उपदेश दूँगा। मै तो आज तुम्हारे दर्शन करके धन्य हो गया।" 🌻🌻🌻🌻🌻🌻
(सचित्र प्रस्तुति।)
🌻*🌷*परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा बनाये रखे।***************************

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)********


 -  व्यवहारिक आध्यात्म  (http://www.vyavaharikaadhyatm.com/)

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