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Tuesday, 28 June 2016

भाग - ९ - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज के जीवन चरित एवम् महात्म्य पर आधारित 'श्री चच्चा चालीसा' श्रृंखला की आगे की चौपाइया प्रस्तुत है --
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"लखि गुरुतर दायित्व गुरु के,
लाला सन कह वचन हृदय के।
नाथ मोहि निज चरनन रखिये,
यह दायित्व औरन कह दीजै।
है अति कठिन काज यह स्वामी,
सब तुम जानहु अन्तर्यामी।"
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परम् पूज्य चच्चा जी महाराज ने यह देखा कि गुरु का कार्य साधारण कार्य नही है यह तो कर्तव्यों और दायित्वों से भरा हुआ है,एक बार भी जिसने भाव से स्मरण करके अपने को समर्पित कर दिया ऐसे प्रत्येक शिष्य के जीवन के प्रत्येक क्षण का अनवरत अनुश्रवण करना।यह बड़े दायित्व की बात है।उन्होंने अपने ह्रदय के वचन लालाजी महाराज से कहे कि प्रभु मुझे तो आप अपने चरणों की शरण में रखिये और ये गुरु बनने का दायित्व किसी और को दे दीजिये।प्रायः लोग बाहरी चमक दमक देखकर गुरु बनने के चक्कर में रहते है ।पुनः उन्होंने लालाजी महाराज से कहा कि आप तो स्वयम अन्तर्यामी है।मुझे तो अपने चरणों का अमृत रसपान करने दे।
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*परम् पूज्य गुरुदेव सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखे।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)******



 -  व्यवहारिक आध्यात्म  (http://www.vyavaharikaadhyatm.com/)

Thursday, 23 June 2016

भाग - ८ - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज पर रचित 'श्री चच्चा चालीसा' व्याख्या सहित कुछ दिनों से प्रस्तुत की जा रही है।उसी श्रृंखला की आगे की प्रस्तुति–
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"वचन सुने गृहस्थाश्रम आये,
उचित समय लालाजी पाये।
प्रथमहि भेंट भये अधिकारी,
ब्रह्मलीन जदपि तन धारी।
शिष्य बनन गवनेऊ थे ताता,
सद्गुरु बन लौटे गृह नाथा।"
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परम् पूज्य चच्चा जी महाराज मौनी सन्त की आज्ञानुसार गृहस्थाश्रम में लौट आये।उसके कुछ समय बाद उनकी लालाजी महाराज से भेंट हुई,उनकी भेंट भी बड़ी विशेष थी।चच्चा जी महाराज लालाजी महाराज के पास जाते है और पहली ही भेंट में लालाजी महाराज उन्हें अपनी सारी आध्यात्मिक शक्तियाँ सौप देते है।सामान्यतया होता क्या है जब कोई गुरु अपनी आध्यात्मिक शक्तिया किसी शिष्य को सौपना चाहते है तो बरसो उसको प्रशिक्षण देते है ,उसका मूल्यांकन करते है तब उसे अपनी आध्यात्मिक शक्तियाँ सौपते है।पर चच्चा जी को प्रथम भेंट में ही लालाजी महाराज ने देख लिया यह तो पूर्ण रूप से परिपक्व है इनमे सब कुछ है केवल ज्योति प्रज्ज्वलित करने की ही आवश्यकता है और वो उन्होंने कर दी।इससे यह स्पष्ट होता है कि चच्चा जी महाराज की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि उनके शरुआती जीवन से ही कितनी सबल थी कि उन्हें किसी प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता नही थी,और उन्होंने पहली ही बार में अपने गुरु महाराज से वह सब प्राप्त किया जिसके लिये लोगो को कई जन्मों तक प्रयास करना पड़ जाता है।और इस प्रकार चच्चा जी महाराज शिष्य बनने गए थे लेकिन वहाँ से सदगुरु बन कर लौटे।"🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
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परम् पूज्य गुरुदेव से यह प्रार्थना है कि वे ऐसी कृपा करे कि हम सबका उनके चरणों में अनन्य प्रेम हो।
🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)***************


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Wednesday, 15 June 2016

भाग - ७ - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

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🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज पर रचित श्री चच्चा चालीसा श्रृंखला की आगे की प्रस्तुति–

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"वृथा परिश्रम दिवस गंवाये,
नहि कोऊ सद्गुरु सम मन भाये।
मौनी सन्त ऋषिकेश निवासा,
भ्रमत भ्रमत प्रभु पहुचेउ पासा।
कहेऊ सन्त कलिकाल है भाई,
दुर्लभ गुरु पारस की नाई।
विषयी व्यक्ति वेश धर लीन्हा,
जेहि सर्वत्र प्रदूषण कीन्हा।
वापस होहु गृहस्थ में भाई,
जह समरथ सद्गुरु तुम पाई।"


🌻🌻🌻परम् पूज्य चच्चा जी महाराज ने बहुत से सन्तों की तलाश की अंत में सन्तों की खोज करते करते वे ऋषिकेश पहुँचे,वहाँ एक पहुँचे हुए मौनी सन्त से उनकी मुलाकात हुई।मौनी सन्त ने चच्चा जी महाराज से लिख कर बात की और स्पष्ट शब्दों में कहा कि जिसकी तलाश तुम कर रहे हो वो तुम्हे जंगलो में तीर्थो और मन्दिरो में नही मिलेगा।वह कोई गृहस्थाश्रम का व्यक्ति होगा वही तुम्हारा कल्याण करेगा और तुम्हारे माध्यम से लाखो लोगों का कल्याण होगा।तुम वापस उसी गृहस्थाश्रम में लौट जाओ।उन मौनी सन्त ने यह भी कहा यह कलिकाल है और इस समय सद्गुरु मिलना पारस की तरह दुर्लभ है।सामान्यतः विषयी लोग है जिन्होंने वेश रख लिया है जो केवल लोगो को ठग रहे है और प्रदूषण फैला रहे है।ऐसे ही लोगों का बाहुल्य है।चच्चा जी महाराज को मौनी सन्त की सलाह अच्छी लगी और एकदम से उनके मानस पटल पर अंकित हो गयी उन्होंने निर्णय लिया कि बस अब गृहस्थाश्रम में वापस होना है।और जैसाकि मौनी सन्त ने कहा था कि वही तुमको गुरु मिलेंगे।अतः चच्चा जी महाराज गृहस्थाश्रम लौट आये।"

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🌻*🌷* हे परम् पूज्य गुरुदेव आपकी जय हो।जय हो।जय हो।******************
🌹🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)************   


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Tuesday, 7 June 2016

भाग - ६ - श्री चच्चा चालीसा व्याख्या - सौजन्य व्यवहारिक आध्यात्म

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🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज,परम् पूज्य पापाजी एवम् सभी सन्तों को व्यवहारिक अध्यात्म परिवार की तरफ से कोटि कोटि प्रणाम।******

प्रस्तुत है 'श्री चच्चा चालीसा 'श्रृंखला की आगे की चौपाइया व्याख्या सहित–
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चलत चलत चित्रकूटहि आये,
सन्त श्री रामनारायण पाये।
चच्चा दम्पति देख चकित भये,
रामनारायण पुलकित भये।
अतिथि दम्पति कह आसन दीन्हा,
बारम्बार नमन है कीन्हा।
बोलेउ आज सिया रघुराई ,
आये है मोरे गृह भाई।
चच्चा कहेउ उपदेसहु ताता,
सन्त कहेउ स्वयम प्रभु भ्राता।
मै तुम्ह कह उपदेसहु स्वामी,
आज धन्य मोहि कीन्ह भवानी।
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परम् पूज्य चच्चा जी महाराज एवम् अम्मा जी (चच्चा जी महाराज की धर्मपत्नी, जिन्हें लोग अम्माजी के नाम से सम्बोधित करते थे) सन्तों की खोज में सबसे पहले चित्रकूट पहुँचे। वहाँ सन्त श्री रामनारायण जी से उनकी भेंट हुई, जो बहुत पहुँचे हुए सन्त थे।चच्चा जी महाराज ने सोचा इन्हें ही अपना गुरु बना लिया जाये। इस आशय से वे उनकी कुटिया में पहुँचते है, वहाँ पर दृश्य एकदम उल्टा हो जाता है। चच्चा जी महाराज गए थे उन्हें गुरु बनाने किन्तु चच्चा जी महाराज एवम् अम्मा जी को देखकर श्री रामनारायण जी भाव विह्वल हो गए और उनकी आरती उतारने लगे और पैर छूने लगे। बार बार उनको नमन करने लगे तथा बोले आज तो मेरे घर साक्षात् राम और सीता आये है। चच्चा जी महाराज ने कहा मै तो आपको गुरु बनाने आया हूँ,मुझे उपदेश दीजिये। श्री रामनारायण जी बोले मै तुम्हे उपदेश दूँ यह सम्भव नही है तुम स्वयम ईश्वर के बहुत बड़े अंश हो मै तुम्हे क्या उपदेश दूँगा। मै तो आज तुम्हारे दर्शन करके धन्य हो गया।" 🌻🌻🌻🌻🌻🌻
(सचित्र प्रस्तुति।)
🌻*🌷*परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा बनाये रखे।***************************

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)********


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