***~ॐ~***
*श्री गुरुवे नमः*
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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज पर रचित 'श्री चच्चा चरितम्'(चालीसा) श्रृंंखला के अंतिम दोहे प्रस्तुत है--
"कैसहु सेवक कष्ट परै,सुमिरन उनका कीन्ह।
सकल दुखन के प्रभंजन,नासै जल बिन मीन।।
सकल दुखन के प्रभंजन,नासै जल बिन मीन।।
"सबकी सेवा होत रहै,निदेसहु जयदयाल।
सुसमय स्वामी कृष्ण जी,सम्प्रति कृष्णदयाल।।
सुसमय स्वामी कृष्ण जी,सम्प्रति कृष्णदयाल।।
"चच्चा चालीसा पढ़ै,नासै दुःख की रैन।
लखि निज पितु की सदगति,भर आवत नैन।।
लखि निज पितु की सदगति,भर आवत नैन।।
चच्चा जी महाराज कहते थे अगर हमारा शिष्य कोई गलती करता है तो उसे सही मार्ग पर लाने के लिए किसी प्रकार की सख्ती की आवश्यकता है तो यह हमारा काम है कि उसके साथ कितनी सख्ती करनी है और कैसे राह पर लाना है लेकिन अगर तीसरे आदमी ने तिरछी निगाह करके भी देखा और इस उद्देश्य से कि उसे अनावश्यक रूप से परेशान करता है तो चच्चा जी महाराज स्वयम ऐसे व्यक्ति से अपने शिष्य की रक्षा करते है । बहुत से ऐसे उदाहरण है जिन्हें लोगो ने परेशान किया अंत में जाकर उन्हें इसका दण्ड भुगतना पड़ा।
इसके बाद चच्चा जी महाराज को यह चिंता थी कि जो सेवा का सन्कल्प और पुनीत कार्य जो उन्होंने प्रारम्भ किया है वह उनके शरीर छोड़ने के बाद यथावत बना रहे।पूरी व्यवस्था कर गए है।सबसे पहले उन्होंने परम् सन्त डॉक्टर जयदयाल जी को अपना यह कार्य देखने के लिए निर्देशित किया और अपने शेष पुत्रो के लिए भी यह लिख गए है समय आने पर वह स्वयम पूर्ण प्रकाशित होंगे और आध्यात्मिक सेवा कार्य करेंगे।
वास्तव में ये सेवा का कार्य चल रहा है।पूज्य चच्चा जी महाराज के दिवतीय पुत्र श्री कृष्ण दयाल जी (पापाजी)के सम्पर्क में हम लोग है।हम लोग ये जानते है कि पूर्ण रूप से चच्चा जी महाराज की आध्यात्मिक शक्ति उनकें माध्यम से पूर्णतया क्रियाशील है जो निकटस्थ है वे इससे भलीभांति परिचित है।
वास्तव में ये सेवा का कार्य चल रहा है।पूज्य चच्चा जी महाराज के दिवतीय पुत्र श्री कृष्ण दयाल जी (पापाजी)के सम्पर्क में हम लोग है।हम लोग ये जानते है कि पूर्ण रूप से चच्चा जी महाराज की आध्यात्मिक शक्ति उनकें माध्यम से पूर्णतया क्रियाशील है जो निकटस्थ है वे इससे भलीभांति परिचित है।
अंतिम दोहा मैने(श्री ओम प्रकाश)अपने पूज्य पिता जी की स्मृति में लिखा है।पूज्य पिताजी की मृत्यु हम लोगो के लिए वास्तव में दुःख की काली रात थी।इसको चच्चा जी महाराज ने किस तरह परिवर्तित किया है इसका आभास हम लोगो के सभी पारिवारिक जनो को उन्होंने स्पष्ट रूप से दिया है जो सदगति हमारे पूज्य पिताजी को मिली वह अनुभव का विषय है।जब इस तरह के गुरुदेव की कृपा के अनुभव दूसरो को होते है तो निश्चित रूप से स्वतः प्रमाणित होते है।
अपने पूज्य पिताजी की स्मृति में मैंने इस चालीसा को समर्पित किया है।
"आज इस श्रृंखला की अंतिम प्रस्तुति है।परम् पूज्य पापाजी ने कहा कि"कोई भी साधक किसी भी धर्म या मार्ग का हो उसे इस चालीसा को अपने गुरुदेव या आराध्य के ध्यान में स्थित होकर पढ़ना चाहिए क्योकि सभी सन्त और महापुरुष ऊपर से भिन्न होते हुए भी आंतरिक रूप से एक है ।इसके पाठ से गुरुदेव के माध्यम से अमूर्त शक्ति प्रकाश के रूप में प्राप्त होती है तथा साधक के अन्तःकरण को प्रकाशित करती है जिससे आध्यात्मिक प्रक्रिया प्रारम्भ होने लगती है।"
ॐ शांति शांति शांति।
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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज एवम् उनके चारो पुत्रो के फ़ोटो प्रस्तुत है–
परम् संत सद्गुरू श्री चच्चा जी महाराज
परम् पूज्य श्री जयदयाल जी
परम् पूज्य श्री कृष्णदयाल जी(पापाजी)
परम् पूज्य डॉक्टर स्वामी जी
परमपूज्य डॉक्टर कृष्णा जी