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Saturday, 30 April 2016

प्रभु प्रेम - सिमरन - श्री एस० एस० नारंग, उज्जैन

               सिमरन अर्थात् सतत् स्मरण परमेश्वर का जो सिमरन करते हैं वे धनवान हैं और वही सब मनुष्यों में श्रेष्ठ हैं प्रभु का सिमरन करने वाले बेमुहताज होते हैं अर्थात् उन्हें दुनिया में किसी की मोहताजी नहीं होती वे तो शहंशाह होते हैं और सब उनकी आज्ञा का पालन करते हैं वे सदैव सुखी रहते हैं और वे सदैव स्थिर रहते हैं अर्थात् आवागमन से मुक्त हो जाते हैं परमेश्वर के सिमरन में वही जुड़ते हैं जिन पर प्रभु स्वयं मेहरबान होते हैं अर्थात् जिस मनुष्य पर कृपानिधान पारब्रह्म परमेश्वर कृपा-दृष्टि करता है वही उसका सिमरन करने में समर्थ होता है

                                प्रभु-सिमरन में लीन मनुष्य ही वास्तव में धनी है, क्योंकि उन्हीं के पास सदा कायम रहने वाला नाम-खजाना है क्योंकि दुनिया द्वारा प्राप्त मान-सम्मान आज है, कल नहीं भी हो सकता नाम-सिमरन से प्राप्त मान-सम्मान सदैव कायम रहने वाला है

                                प्रभु का सिमरन करने वाले जीव परोपकारी हो जाते हैं अर्थात् जो इंसान परमेश्वर को याद करता है वह पर-सेवा के लिए जीता है, दूसरों का भला करना ही उसके जीवन का परम लक्ष्य हो जाता है प्रभु स्मरण करने वालों के मुख शोभायुक्त अर्थात् सुंदर लगते हैं तथा उनका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है और वे अपने मन को जीत लेते हैं अर्थात् वेमनि जीतै जगु जीतुवाली उच्च अवस्था के मालिक बन जाते हैं सिमरन की बदौलत उनका जीवन जीने का ढंग भी पवित्र हो जाता है और गहन आनंद की अनुभूति होती है इसी के कारण वे सदैव प्रभु की हजूरी में रहते हैं


                                हर वक्त प्रभु को याद करने से समस्त कार्य सफल और संपूर्ण होते हैं ऐसे भक्त प्रभु के गुण गायन करने के आदी हो जाते हैं अर्थात् उन्हें प्रभु-स्तुति की आदत हो जाती है शुभ कर्मों के संस्कारों वाले स्वभाव में तबदील होने के कारण सिमरन करने वाले सहजावस्था में स्थिर रहते हैं अर्थात् सहजता उनके जीवन का स्वाभाविक गुण बन जाती है प्रभु का सिमरन करने वालों के मन रूपी आसन अडोल हो जाते हैं अर्थात् उन्हें अटल ठिकाना (स्थान) प्राप्त हो जाता है जिससे हृदय रूपी कमल खिल उठता है प्रभु-सिमरन से अनहद नाद गूंज उठता है अर्थात् एकरस संगीत के वाद्य-यंत्रों की मीठी सरस धुनें हृदय को रसान्वित करती रहती है प्रभु-सिमरन से जो सुख, शांति एवं सकून प्राप्त होता है वह कदाचित खत्म नहीं होता अर्थात् वह आलौकिक आनंद सदैव कायम रहता है

                                प्रभु की याद में डूबा रहने वाला भक्त-जन जगत में ख्याति प्राप्त कर लेता है अर्थात् संसार में प्रसिद्धि पा लेता है प्रभु-सिमरन में चित्त को जोड़कर ही ऋषियों-मुनियों ने वेद आदि धर्म-ग्रंथों की रचना की इसी के द्वारा ही मनुष्य, सिद्ध पुरूष, जती अर्थात् अपनी इंद्रियों को वश में रखने वाले बन जाता है दानशीलता का गुण भी सिमरन की बदौलत ही आता है सिमरन की बदौलत ही नीच, अधम कहलाने वाले मनुष्य विश्व भर में प्रसिद्धि पा गए निराकार (निर्गुण स्वरूप) ने ही समस्त आकारों की रचना की है और वह निराकार प्रभु स्वयं सर्वत्र में बसता है गुरुनानक देवजी स्पष्ट करते हैं कि जहां भी प्रभु का सिमरन होता है प्रभु वहीं निवास करते हैं सतगुरु स्वयं जिस पर अपनी कृपा-दृष्टि करते हैं उसे ही सतगुरु द्वारा प्रभु-सिमरन की बख्शीश प्राप्त होती है अर्थात् जिस पर कृपालु ईश्वर की रहमत होती हैं उसे ही यह रहस्य समझ में आता है कि सिमरन में ही समस्त सुख समाये हुए हैं सिमरन करके ही मनुष्य उच्चावस्था को सहजता से प्राप्त कर लेता है

                                इतिहास में अनेकों ही उदाहरण हैं जिससे स्पष्ट होता है कि प्रभु स्मरण से कितने उत्तम पद की प्राप्ति हो जाती है रत्नाकर डाकू इसी की बदौलत बाल्मीकि हो गए, जिन्होंने रामायण की रचना की ध्रुव, प्रह्लाद जैसे अबोध बालकों ने प्रभु-सिमरन से अटल पद की प्राप्ति की यही नहीं, ईश्वर ने प्रत्यक्ष रूप में उन्हें दर्शन भी दिये प्रभु-सिमरन की युक्ति कैसी हो यह समझाने हेतु संत कबीर दास जी ने भक्त ध्रुव और भक्त प्रह्लाद के उदाहरण देकर कलियुगी जीवों का मार्ग प्रशस्त किया है

                                श्री गुरु अर्जुन देवजी मन को प्रबोधित करते हुए, कलयुगी जीवों का मार्गदर्शन करते हुए फरमान करते हैं कि हे मन जहाँ माता, पिता, पुत्र, मित्र, भाई आदि कोई भी (दुनियावी रिश्तेदार) नहीं होगा वहां प्रभु-नाम ही तेरा वास्तविक सहायक है अर्थात् जहाँ कोई भी साथ निभाने वाला नहीं वहाँ परमेश्वर का नाम ही तेरा सच्चा साथी है जीव के कर्मानुसार जहाँ अत्यंत भयानक डरावने आकार अनेक कष्ट देते हैं अर्थात् जहाँं बड़े-बड़े यमदूतों के समूह हैं वहां तेरी कोई नहीं जायेगी, वहां तो केवल प्रभु का नाम ही तेरे साथ जा सकता है जहां तेरे समक्ष अत्यंत कठिनाईयाँ पेश आयेंगी वहाँ प्रभु का नाम क्षण भर में तुझे बचा लेगा अनेकों धार्मिक क्रिया-कलाप करके भी जहां मनुष्य पापों से नहीं बच सकता वहाँ परमेश्वर का नाम करोड़ों पापों को नष्ट कर देता है अर्थात् प्रभु नाम में अनेकों पापों को नाश करने की सामथ्र्य है जहां पापों के लिए अनेक प्रायश्चित करके भी भवसागर के पार उतारना संभव नहीं वहाँ प्रभु का नाम पलक झपकते सहज स्वभाव ही संसार रूपी भवसागर से पार उतारने में समर्थ है अतः हे मेरे मन ! गुरु के सन्मुख होकर प्रभु का नाम जप, उस परमेश्वर का सिमरन कर, इस तरह तू अनेक सुख प्राप्त कर लेगा गुरु जी पावन संदेश देते हैं कि गुरु की शरण में आकर प्रभु के नाम की आराधना द्वारा अनेकों सुखों से तेरी झोली भर जायेगी और भवसागर से पार हो जायेगा।

Friday, 15 April 2016

श्रीराम नवमी पर विशेष


भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी ,
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप विचारी। 

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी ,
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी। 

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता ,
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता। 

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता ,
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता। 

ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै ,
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै। 

उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ,
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै। 

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा ,
कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा। 

सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा ,
यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा।